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चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय

हरियाणा में कृषि मेला, किसानों को नई तकनीक से कराया जाएगा अवगत

हरियाणा में कृषि मेला, किसानों को नई तकनीक से कराया जाएगा अवगत

भारत किसानों का देश है और किसान भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़. ऐसे में, केंद्र सरकार समेत तकरीबन हर राज्य सरकार समय-समय पर किसानों की बेहतरी के लिए, उन्हें बेहतर प्रशिक्षण देने, कृषि क्षेत्र में आने वाली नई तकनीकों की जानकारी देने का काम करती है. इसी क्रम में, आने वाले 13-14 सितंबर को हरियाणा के हिसार में एक कृषि मेला का आयोजन होने जा रहा है. इस कृषि मेले में किसानों को नए कृषि मशीनों, कृषि तकनीकों आदि के बारे में जानकारी दी जाएगी.

जल बचाना प्राथमिकता

हरियाणा के हिसार में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय है, जहां 13-14 सितंबर को कृषि मेला का आयोजन किया जाएगा. यूनिवर्सिटी के वाईस चांसलर ने मीडिया को जो जानकारी दी है, उसके अनुसार इस बार के मेले में पानी कैसे बचाना है, इस पर अधिक जोर दिया जा रहा है. इस मेले का थीम भी इस साल पानी बचाने को लेकर ही तैयार किया गया है. यानी, यहाँ आने वाले किसानों को पानी बचाने की तकनीक के बारे में अधिक से अधिक बताने पर ध्यान दिया जाएगा. इसके लिए जल बचाने से संबंधित उपकरण बनाने वाली कंपनियां भी यहाँ अपने उत्पादों का प्रदर्शन करेंगी.


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नई कृषि तकनीक की जानकारी

भारत में खेती का काम अमूमन छोटे जोत के किसान अधिक करते हैं. ऐसे में, कम जमीन से अधिक उपज पाना हमेशा से एक चुनौती रही है. इसके लिए नई तकनीक का इस्तेमाल, वैज्ञानिक विधि से खेती का महत्व बढ़ जाता है. जाहिर है, कृषि मेला जैसे आयोजन इस दिशा में काफी सहायक माने जाते है. इस कृषि मेले में भी किसानों को उन्नत तकनीक से पैदा की गयी खरीफ फसलों से परिचित कराया जाएगा. इस मेले में किसानों को खेती के साथ ही पशुपालन से सबंधित समस्याओं पर सवाल भी पूछने का मौक़ा मिलेगा. इसके अलावा, मेला के दौरान ही किसान अपने खेतों की मिट्टी की भी जांच मुफ्त में करवा सकेंगे. मेले में विभिन्न कंपनियों के स्टाल होंगे और इसके लिए अभी से ही बुकिंग शुरू हो चुकी है. किसानों की सुविधा के लिए और मानसून सीजन को देखते हुए वाटर प्रूफ पंडाल बनाया जा रहा है. गौरतलब है कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय उक्त कृषि मेले का आयोजन प्रति वर्ष सितंबर के महीने में करता रहा है. इस मेले में हरियाणा के अलावा पंजाब, उत्तर प्रदेश से भी हजारों किसान भाग लेते हैं.
भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र

भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र

भारत दुनिया में मोटे अनाजों (Coarse Grains) का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, इसलिए भारत इस चीज के लिए तेजी से प्रयासरत है कि दुनिया भर में मोटे अनाजों की स्वीकार्यता बढ़े। 

इसको लेकर भारत ने साल 2018 को मिलेट्स ईयर के तौर पर मनाया था और साथ ही अब साल 2023 को संयुक्त राष्ट्र संघ इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM-2023) के तौर पर मनाएगा। इसका सुझाव भी संयुक्त राष्ट्र (United Nations) संघ को भारत सरकार ने ही दिया है, जिस पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने सहमति जताई है।

इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें देश के भीतर मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार ने देश में तीन नए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किये हैं, जो देश में मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ाने में सहायक होंगे, साथ ही ये उत्कृष्टता केंद्र देश में मोटे अनाजों के प्रति लोगों को जागरूक भी करेंगे।

  • इन तीन उत्कृष्टता केंद्रों में से पहला केंद्र बाजरा (Pearl Millet) के लिए  चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार (Chaudhary Charan Singh Haryana Agricultural University, Hisar) में स्थापित किया गया है। यह केंद्र पूरी तरह से बाजरे की खेती के लिए, उसके उत्पादन के लिए तथा उसके प्रचार प्रसार के लिए बनाया गया है, इसके साथ ही यह केंद्र लोगों के बीच बाजरे के फायदों को लेकर जागरूक करने का प्रयास भी करेगा।
  • इसी कड़ी में सरकार ने दूसरा उत्कृष्टता केंद्र भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद (Indian Institute of Millets Research (IIMR)) में स्थापित किया है। यह केंद्र ज्वार (Jowar) की खेती को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है। यह केंद्र देश भर में ज्वार की खेती के प्रति लोगों को जागरूक करेगा, साथ ही लोगों के बीच ज्वार से होने वाले फायदों को लेकर जागरूकता फैलाएगा।
  • इनके साथ ही तीसरा उत्कृष्टता केंद्र कृषि विज्ञान विश्विद्यालय, बेंगलुरु (University of Agricultural Sciences, GKVK, Bangalore) में स्थापित किया गया है। यह उत्कृष्टता केंद्र छोटे मिलेट्स जैसे कोदो, फॉक्सटेल, प्रोसो और बार्नयार्ड इत्यादि के उत्पादन और प्रचार प्रसार के लिए बनाया गया है।
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मोटे अनाजों में मुख्य तौर पर ज्वार, बाजरा, मक्का, जौ, फिंगर बाजरा और अन्य कुटकी जैसे कोदो, फॉक्सटेल, प्रोसो और बार्नयार्ड इत्यादि आते हैं, इन सभी को मिलाकर भारत में मोटा अनाज या मिलेट्स (Millets) कहते हैं। 

इन अनाजों को ज्यादातर पोषक अनाज भी कहा जाता है क्योंकि इन अनाजों में चावल और गेहूं की तुलना में 3.5 गुना अधिक पोषक तत्व पाए जाते हैं। मोटे अनाजों में पोषक तत्वों का भंडार होता है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद फायदेमंद होते हैं। 

मिलेटस में मुख्य तौर पर बीटा-कैरोटीन, नाइयासिन, विटामिन-बी6, फोलिक एसिड, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जस्ता आदि खनिजों के साथ विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। 

इन अनाजों का सेवन लोगों के लिए बेहद फायदेमंद होता है, इनका सेवन करने वाले लोगों को कब्ज और अपच की परेशानी होने की संभावना न के बराबर होती है। 

ये अनाज बेहद चमत्कारिक हैं क्योंकि ये अनाज विपरीत परिस्तिथियों में भी आसानी से उग सकते हैं, इनके उत्पादन के लिए पानी की बेहद कम आवश्यकता होती है। 

साथ ही प्रकाश-असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन का भी इन अनाजों पर कोई ख़ास प्रभाव नहीं पड़ता, इसलिए इनका उत्पादन भी ज्यादा होता है और इन अनाजों का उत्पादन करने से प्रकृति को भी ज्यादा नुकसान नहीं होता। 

आज के युग में जब पानी लगातार काम होता जा रहा है और भूमिगत जल नीचे की ओर जा रहा है ऐसे में मोटे अनाजों का उत्पादन एक बेहतर विकल्प हो सकता है क्योंकि इनके उत्पादन में चावल और गेहूं जितना पानी इस्तेमाल नहीं होता। 

यह अनाज कम पानी में भी उगाये जा सकते हैं जो पर्यावरण के लिए बेहद अनुकूल हैं। मोटे अनाजों का उपयोग मानव अपने खाने के साथ-साथ जानवरों के खाने के लिए भी कर सकता है, इन अनाजों का उपयोग भोजन के साथ-साथ, पशुओं के लिए और पक्षियों के चारे के रूप में भी किया जाता है। ये अनाज हाई पौष्टिक मूल्यों वाले होते हैं जो कुपोषण से लड़ने में सहायक होते हैं।

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मोटे अनाजों का उत्पादन देश में कर्नाटक, राजस्थान, पुद्दुचेरी, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश इत्यादि राज्यों में ज्यादा किया जाता है, क्योंकि यहां की जलवायु मोटे अनाजों के उत्पादन के लिए अनुकूल है और इन राज्यों में मिलेट्स को आसानी से उगाया जा सकता है, 

इसके साथ ही इन राज्यों के लोग अब भी मोटे अनाजों के प्रति लगाव रखते हैं और अपनी दिनचर्या में इन अनाजों को स्थान देते हैं। इसके अलावा इन अनाजों का एक बहुत बड़ा उद्देश्य पशुओं के लिए चारे की आपूर्ति करना है। मोटे अनाजों के पेड़ों का उपयोग कई राज्यों में पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है, 

इनके पेड़ों को मशीन से काटकर पशुओं को खिलाया जाता है, इस मामले में हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश टॉप पर हैं, जहां मोटे अनाजों का इस उद्देश्य की आपूर्ति के लिए बहुतायत में उत्पादन किया जाता है। 

मोटे अनाजों के कई गुणों को देखते हुए सरकार लगतार इसके उत्पादन में वृद्धि करने का प्रयास कर रही है। जहां साल 2021 में 16.93 मिलियन हेक्टेयर में मोटे अनाजों की बुवाई की गई थी, 

वहीं इस साल देश में 17.63 मिलियन हेक्टेयर में मोटे अनाजों की बुवाई की गई है। अगर वर्तमान आंकड़ों की बात करें तो देश में हर साल 50 मिलियन टन से ज्यादा मिलेट्स का उत्पादन किया जाता है।

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इन मोटे अनाजों में मक्के और बाजरे का शेयर सबसे ज्यादा है। ज्यादा से ज्यादा किसान मोटे अनाजों की खेती की तरफ आकर्षित हों इसके लिए सरकार ने लगभग हर साल मोटे अनाजों के सरकारी समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी की है। इन अनाजों को सरकार अब अच्छे खासे समर्थन मूल्य के साथ खरीदती है। 

जिससे किसानों को भी इस खेती में लाभ होता है। बीते कुछ सालों में इन अनाजों के प्रचलन का ग्राफ तेजी से गिरा है। आजादी के पहले देश में ज्यादातर लोग मोटे अनाजों का ही उपयोग करते थे, लेकिन अब लोगों के खाना खाने का तरीका बदल रहा है, 

जिसके कारण लोगों की जीवनशैली प्रभावित हो रही है और लोगों को मधुमेह, कैंसर, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां तेजी से घेर रही हैं। इन बीमारियों की रोकथाम के लिए लोगों को अपनी थाली में मोटे अनाजों का प्रयोग अवश्य करना चाहिए, जिसके लिए सरकार लगातार प्रयासरत है। 

मोटे अनाजों के फायदों को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें 'सुपरफूड' बताया है। अब पीएम मोदी दुनिया भर में इन अनाजों के प्रचार के लिए ब्रांड एंबेसडर बने हुए हैं। 

"अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 की समयावधि तक कृषि मंत्रालय ने पूर्व में शुरू किए गए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन और प्राचीन तथा पौष्टिक अनाज को फिर से खाने के उपयोग में लाने पर जागरूकता फैलाने की पहल" से सम्बंधित सरकारी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें । 

पीएम नरेंद्र मोदी ने हाल ही में उज्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित हुए शंघाई सहयोग संगठन की बैठक को सम्बोधित करते हुए मोटे अनाजों को 'सुपरफूड' बताया था। 

उन्होंने अपने सम्बोधन में इन अनाजों से होने वाले फायदों के बारे में भी बताया था। पीएम मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन के विभिन्न नेताओं के बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलेट्स फूड फेस्टिवल के आयोजन की वकालत की थी। 

उन्होंने बताया था की इन अनाजों के उत्पादन के लिए कितनी कम मेहनत और पानी की जरुरत होती है। इन चीजों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार लगातार मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए और प्रचारित करने के लिए प्रयासरत है।

कृषि क्षेत्र में पानी के कमी से निपटने के लिए किसानों को उठाने होंगे ये कदम

कृषि क्षेत्र में पानी के कमी से निपटने के लिए किसानों को उठाने होंगे ये कदम

कृषि उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा के लिए पानी महत्वपूर्ण है, आजकल पानी की मात्रा चौंकाने वाली दर से कम हो रही है। सतत विकास के लिए सबसे बड़ी बाधाओं में से एक पानी की बढ़ती कमी भी है। प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए “फसल विविधिकरण” (Crop Diversification) को प्रोत्साहित करने और किसानों को डीजल ट्रैक्टरों के बजाय इलेक्ट्रिक ट्रैक्टरों का उपयोग करने के दिशा में आगे आना होगा। कृषि क्षेत्र के लिए जल संकट बढ़ता जा रहा है क्योंकि लोग अंधाधुंध पानी का अत्यधिक उपयोग कर रहे हैं। गेहूं-धान की फसल वाले क्षेत्रों में भूजल के अति प्रयोग के कारण जल स्तर भी कम हो रहा है, इसलिए कृषि के लिए पानी की कमी एक बड़ी समस्या के रूप में उभर रही है। अगर इसी तरह प्राकृतिक संसाधनों का दोहन जारी रहा तो आने वाले समय में सिंचाई तो दूर, पेयजल की भी भारी किल्लत हो सकती है। विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित कृषि मेला में यह बात  चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज ने कही है।

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उन्होंने कहा कि कृषि उत्पादन के लिए पानी एक महत्वपूर्ण संसाधन है और इसकी विश्वसनीय आपूर्ति होना महत्वपूर्ण है। जल का उचित प्रबंधन और संरक्षण करके हम इसे अगली पीढ़ी को दे सकते हैं। सूखे के खिलाफ लड़ाई में जल संरक्षण एक महत्वपूर्ण कदम है और पानी के संरक्षण के कई तरीके हैं। पानी के संरक्षण के कुछ तरीकों में कम पानी का उपयोग करना, पानी का कुशलतापूर्वक उपयोग करना और पानी का पुनर्चक्रण करना शामिल है। आधुनिक तकनीकों जैसे वर्षा जल संचयन, ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिंचाई के साथ पानी का कम से कम उपयोग किया जा सकता है।

ई-ट्रैक्टर का करे उपयोग

किसानों को संबोधित करते हुए कुलपति ने कहा की किसानों को जल संरक्षण के साथ–साथ पर्यावरण के संरक्षण पर भी जोर देना चाहिए।किसानों को अपने डीजल से चलने वाले उपकरणों के बजाय ई-ट्रैक्टर का उपयोग करने पर जोर देना चाहिए। इससे उत्पन्न होने वाले प्रदूषण की मात्रा में कमी आयेगी और ई ट्रैक्टर के उपयोग करने से डीजल पर होने वाले खर्च के पैसे भी बचेंगे और उन्होंने ई-ट्रैक्टर पर सरकार की ओर से मिलने वाली सब्सिडी की भी जानकारी दी। उन्होंने उन्नत किस्म की फसलों के बीजों के बारे में बताते हुए कहा की 35000 क्विंटल बीज यूनिवर्सिटी के द्वारा किसानों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। समारोह में उपस्थित लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास / LUVAS) के कुलपति डॉ. विनोद कुमार वर्मा ने भी कृषि में जल संरक्षण की आवश्यकता को व्यक्त करते हुए कहा कि सिंचाई के पानी का कुशल प्रबंधन नहीं होने के कारण लगभग 70 प्रतिशत पानी बर्बाद हो रहा है, जिस पर गहन विचार करने की जरूरत है, क्योंकि बहुत सारे ऐसे राज्य है जिनके जमीन के नीचे का पानी पूरी तरह से खत्म हो चुका है, जो की एक अहम मुद्दा है। उन्होंने निवेश पर अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए कृषि व्यवसाय के साथसाथ पशुपालन के महत्व पर भी जोर दिया। भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुधन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ग्रामीण आबादी के दो-तिहाई हिस्से को रोजगार देता है, जिससे उन्हें आजीविका मिलती है। देश के विभिन्न राज्यों में लंपी स्किन रोग की व्यापकता का उल्लेख करते हुए वर्मा ने पशुपालकों से कहा कि वे अपने पशुओं को इस बीमारी से बचाने के लिए हर तरह के सम्भव उपाय और सावधानी बरतना चाहिए, उन्होंने इस बीमारी पर काबू पाने के लिए हरियाणा सरकार और लुवास की ओर से चलाए जा रहे तमाम प्रयासों की जानकारी दी, कृषि मेला संयोजक और विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. बलवान सिंह मंडल ने किसानों की मदद के लिए डिज़ाइन की गई विश्वविद्यालय की विस्तार गतिविधियों के बारे में जानकारी दी।

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हरियाणा और आसपास के राज्यों के किसानों का हुआ जमावड़ा

हरियाणा और आसपास के राज्यों के कई किसान मेले में एकत्रित हुए। मेले के आयोजकों के द्वारा किसानों को सिंचाई, जल प्रबंधन और संरक्षण की जानकारी दी गई। मेले में किसानों के द्वारा लगाए गए स्टॉल भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ था।

मिट्टी–पानी की खूब हुई जांच

विश्वविद्यालय की ओर से लगाए गए बीज बिक्री केंद्र के स्टॉल पर किसानों ने रवि फसलों के बीज को भारी मात्रा में खरीदा, साथ ही किसानों ने अपनी मिट्टी और पानी की जांच मेले में लगे हुए मिट्टी पानी जांच केंद्र पर करवाया। इस आयोजन के अवसर पर बेहतर कार्य करने वाले किसानों को सम्मानित भी किया गया और साथ ही किसान किस तरह से आत्मनिर्भर बने इसको लेकर किसानों को विशेष जानकारी और टिप्स दी गई।